कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi, Dohe Arth Sahit

Aman Shukla
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कबीरदास का जीवन परिचय Kabir Das ka Jivan Parichay


कबीर दास के दोहे अर्थ सहित, जीवन परिचय, रचनाएँ, शिक्षा ( Kabir Das Ke Dohe ), अनमोल वचन , गुरु पर दोहे अर्थ सहित, जन्म और मृत्यु, kabir das ka jivan parichay

दोस्तों! कबीरदास को आप मे से लगभग सभी लोग जानते होंगे, याद करिए जब बचपन में आपको आपके शिक्षक कक्षा में कबीर के दोहे पढ़ाते थे। उस समय भले ही हमे उन दोहों का अर्थ ना मालूम हो लेकिन दोहे पढ़ने में बड़ा मजा आता था। कक्षा में टीचर इन दोहों को इतनी बार पढ़ाते थे कि ये दोहे हमारी जुबान पर रट जाते और जब भी हमारा मन करता हम इन दोहों को गाने लग जाते थे। 

आज के अपने इस लेख में हम कबीरदास जी का जीवन परिचय (Kabir das Biography in Hindi) और उनके द्वारा लिखे गए दोहों को अर्थ सहित आपको बताएँगे, इसलिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़िएगा और अपने बचपन के मित्रों के साथ इस लेख को शेयर जरूर कीजिएगा। 

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Kabir Das ka Jivan Parichay


    कबीरदास का जीवन परिचय ( Kabir Das Biography In Hindi )

    पूरा नाम 

    कबीरदास 

    उपनाम 

    कबिरा, कबीर 

    जन्म-तिथि 

    सन 1398 

    जन्म-स्थान 

    वाराणसी, उत्तर प्रदेश 

    पिता का नाम 

    नीरू 

    माता का नाम 

    नीमा 

    प्रसिद्धि 

    कवि, संत, दार्शनिक 

    मृत्यु  सन 1518
    मृत्यु-स्थान  मगहर, उत्तर प्रदेश 
    रचनाएँ  साखी, सबद, रमैनी 
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    कबीरदास का जन्म और प्रारम्भिक जीवन ( Kabir Das Birthdate and Family Condition )

    कबीरदास के जीवन से संबन्धित अभी तक जितने भी प्रमाण मिले हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है। स्वयं उनके द्वारा रचित काव्य और कुछ तत्कालीन कवियों द्वारा रचित काव्यों में उनके जीवन से संबन्धित तथ्य प्राप्त हुए हैं। इन तथ्यों के आधार पर -

    संत कबीर का जन्म सन 1398 ईसवी में एक जुलाहा परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे ,जिसने लोक लाज के डर से जन्म देते ही कबीर को त्याग दिया था। नीरू और नीमा को कबीर पड़े हुए मिले और उन्होंने कबीर का पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे। लोक कथाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल था और पुत्री का नाम कमाली


    कबीरदास की मृत्यु ( Kabirdas death date) 

    जिस तरह कबीर के जन्म समय को लेकर काफी विवाद है उसी तरह उनकी मृत्यु को लेकर भी काफी ज्यादा विवाद रहा है, किंतु अधिकांश विद्वानों का मानना है कि कबीर का निधन सन 1518 ईस्वी में हुआ था। और कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि इन्होंने स्वेच्छा से मगहर में जाकर अपने प्राण त्यागे थे। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था ताकि लोगों के मन से अंधविश्वास को हटा सकें लोगों के बीच यह अंधविश्वास था कि मगहर में मरने पर हमें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। यही कारण है कि कबीर दास अपने जीवन के अंतिम समय में मगहर में जाकर अपने प्राण त्याग दिए।


    कबीर का साहित्यिक परिचय 

    कबीर एक महान संत भी थे और संसारी भी, समाज सुधारक भी थे और एक सजग कभी भी। वह अनाथ थे, लेकिन सारा समाज उनकी छत्रछाया की अपेक्षा करता था। कबीर के महान व्यक्तित्व एवं उनके काव्य के संबंध में हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ प्रभाकर माचवे ने लिखा है - "कबीर में सत्य कहने का अपार धैर्य था और उसके परिणाम सहन करने की हिम्मत भी। कबीर की कविता इन्हीं कारणों से एक अन्य प्रकार की कविता है। वह कई रूढ़ियों के बंधन तोड़ता है वह मुक्त आत्मा की कविता है।"


    कबीरदास की रचनाएँ

    कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे उन्होंने स्वयं ही कहा है -
       मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ।

    अतः यह सत्य है कि उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं को नहीं लिखा है। इसके बाद भी उनकी वाणीयों के संग्रह के रूप में कई ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में- 'अगाध-मंगल', 'अनुराग सागर', 'अमर मूल ', 'अक्षर खंड रमैनी', 'अक्षर भेद की रमैनी', 'उग्र गीता', 'कबीर की वाणी', 'कबीर ', 'कबीर गोरख की गोष्ठी', 'कबीर की साखी', 'बीजक', 'ब्रह्म निरूपण', 'मुहम्मद बोध', 'रेख़्ता विचार माला', 'विवेकसागर', 'शब्दावली ', 'हंस मुक्तावली', 'ज्ञान सागर' आदि प्रमुख ग्रंथ हैं इन ग्रंथों को पढ़ने से हमें कबीर की विलक्षण प्रतिभा का परिचय मिलता है।  

    कबीर की वाणियों का संग्रह 'बीजक' के नाम से प्रचलित है इसके तीन भाग हैं -
    (1) साखी 
    (2) सबद 
    (3) रमैनी 

    कबीर के दोहे ( Kabir Ke Dohe Quotes )

    कबीरदास के दोहे सुनने में और मन ही मन गुनगुनाने में बड़ा अच्छा लगता है। कबीर के कुछ दोहे अर्थ सहित नीचे दिये गए हैं - 

    गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागौं पाय,
    बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।  

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि एक बार गुरु और ईश्वर एक साथ खड़े थे तभी शिष्य को समझ में नहीं आ रहा था कि पहले किसके पाऊं छुए, इस पर ईश्वर ने कहा कि तुम्हें सबसे पहले अपने गुरु के पाव छूने चाहिए।

    दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय ,
    जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय। 

    अर्थ- कबीरदास कहते हैं कि लोग जब दुखी होते हैं तो ईश्वर को याद करते हैं जबकि सुख में लोग ईश्वर को याद नहीं करते। अगर लोग सुख में भी ईश्वर को याद करें उनकी आराधना करें तो उन्हें दुःख आ ही नहीं सकता।
     

    कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर,
    ना काहू से दोसती, ना काहू से बैर। 

    अर्थ - कबीर जी ने  कहा कि जब उन्होंने इस संसार में जन्म लिया तो उनके मन में यहां के लोगों के लिए यही भावना थी कि सभी लोग अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करें और किसी के भी मन में एक दूसरे के प्रति बैर भाव ना हो।

    यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
    शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि हमारा यह शरीर जहर की गठरी के समान है और हमारे गुरु अमृत की तरह है तो अगर आपको अपना शीश भी देना पड़े ऐसे गुरू के लिए तो वह सौदा भी बहुत सस्ता होता है।

    ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
    औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जैसे दूसरों को शीतलता मिले और साथ ही साथ स्वयं का मन भी शीतल हो जाए अर्थात हमेशा अच्छी वाणी ही बोलनी चाहिए।

    बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
    हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य की बोली बहुत ही ज्यादा अमूल्य है इसे बोलने से पहले हमें अपने हृदय रूपी तराजू में इसे तोलना चाहिए उसके बाद ही यह हमारे मुंह से बाहर आनी चाहिए।

    साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।
    मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।

    अर्थ - कबीरदस जी ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मुझे केवल उतना ही दीजिए जिसमें मैं और मेरा परिवार भूखा ना रहे और दरवाजे पर से कोई वापस न लौटें।

    जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
    सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

    अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहम था तब मुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई लेकिन जब मुझे हरी मिल गए तो मेरे अंदर से सारा निकल गया या बिल्कुल उसी तरह निकल गया जैसे दीपक जलाने पर सारा अंधियारा मिट जाता है।

    बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
    जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुरा खोजने चला तो मुझे कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला, जब मैंने अपने ही मन में झांक कर देखा तो मुझे पता चला कि संसार में मुझसे बुरा इंसान कोई नहीं है।

    तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
    कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी अपने जीवन में एक तिनके की भी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि जो तिनका हमारे पांव के नीचे होता है वही जब आंख में पड़ जाता है तो हमें कष्ट देता है।

    पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग इस संसार में जन्म लेते हैं पढ़ते हैं और मर जाते हैं लेकिन कोई भी पंडित नहीं हो पाता जो व्यक्ति प्रेम के ढाई अक्षर को समझ लेता है वह सबसे बड़ा विद्वान होता है।

    धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार में हर एक काम धीरे-धीरे होता है जिस तरह माली अपने फूलों को 100 घड़े भी  सींच ले लेकिन जब ऋतु आती है तभी उस में फल लगते हैं।

    जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
    मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी भी साधु की  शरीर नहीं देखनी चाहिए बल्कि हमें उनसे ज्ञान की बातें सीखनी चाहिए जिस प्रकार से तलवार की दुकान पर मूल्य केवल तलवार का होता है ना कि उसकी म्यान का जिसमें वह रखा गया है।

    निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।
    बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।

    अर्थ - 

    बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
     पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।

    अर्थ - कबीर कहते हैं कि इतना बड़ा होने से क्या होगा अगर आप किसी की सहायता न कर पाए जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना बड़ा होता है लेकिन वह किसी भी पक्षी को ना तो छाया दे पाता है और उसमें फल भी बहुत दूर लगते हैं।


    कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
    ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये

    अर्थ - कबीर कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तो सारा संसार हंसा था और हम रोए थे लेकिन हमें इस संसार में ऐसा काम करके जाना है कि जब हमारी मृत्यु तो हम हंसे और यह पूरा संसार हमारी मृत्यु पर आँसू बहाये ।

    मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,
    मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि मांगना और मरना एक समान है इसलिए भीख मत मांगो उनके गुरु कह गए हैं कि भीख मांगने से अच्छा मरना है।

    लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।
    अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि अभी समय है अभी से ही ईश्वर की भक्ति करना प्रारंभ कर दो क्योंकि जब अंत समय आएगा और प्राण छूटने लगेंगे तब पछताने से कुछ भी नहीं होगा।

    रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
    हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य रात में सो कर और दिन में खा कर अपने अमूल्य समय को बर्बाद कर देता है और इस हीरे रूपी जन्म को कौड़ी में बदल देता है।

    कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।
    साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।

    अर्थ - 

    तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।
    सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।

    अर्थ - कबीर का कहना है कि तीरथ जाने से हमें एक फल मिलता है वहीं अगर संत मिल जाए तो हमें चार फल मिलते हैं लेकिन अगर हमारे जीवन में एक अच्छे गुरु मिल जाए तो हमें अनेकों फल मिलते हैं।

    जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।
    जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि जहां पर दया होती है वहां धर्म होता है जहां पर लालच होती है वहां पाप होता है और जहां पर क्रोध होता है वहां पर मृत होती है लेकिन जहां पर क्षमा होती है वहां पर स्वयं ईश्वर निवास करते हैं

    काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
    पल में परलय होएगी, बहुरि करेगो कब ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं जो काम कल करना चाहिए वह आज करो और जो आज करना है वह भी करो क्योंकि समय कब गुजर जाएगा हमें पता नहीं चलेगा और हम पछताते रह जाएंगे।

    माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
    एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

    अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुंभार से कहती है कि तू मुझे क्या  एक दिन ऐसा आएगा जब मैं खुद तुम्हें मिट्टी में मिला दूंगी।

    धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
    अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।

    अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म का कार्य करने से कभी धन नहीं घटता है ना तो नदी को देखने से उसका पानी कम होता है कबीर जी कहते हैं कि यह उन्होंने अपनी आंखों से देखा है।

    माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,
    कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

    अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं की दिन रात भगवान की पूजा करने से कुछ नहीं होगा जब तक आपका मन अंदर से शुद्ध नहीं है इसीलिए सबसे पहले हमें अपने मन को शुद्ध करना चाहिए।

    अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
    अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

    अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि ना तो ज्यादा बोलना ही अच्छा है और ना ही ज्यादा चुप रहना अच्छा है उसी तरह ना तो ज्यादा बरसना ही अच्छा है और ना तो बहुत ज्यादा धूप ही अच्छी है।

    निष्कर्ष (Conclusion ) 

    इस लेख में Kabir das ka Jivan Parichay के बारे में सारी जानकारी दी गयी है । हमें आशा है कि इस लेख के माध्यम से आपको सन्त कबीर दास के बारे में, उनके साहित्यिक परिचय के बारे में और उनके दोहों के बारे में काफी जानकारी मिल गयी होगी। धन्यवाद! 
     

    FAQs

    संत कबीर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

    संत कबीरदास का जन्म सन् 1398 में काशी में हुआ था।

    संत कबीर के माता पिता का क्या नाम था?"

    कबीरदास के पिता का नाम नीरू और माता का नाम नीमा था।

    कबीरदास किस धर्म के थे?

    कबीरदास बचपन से ही एक मुस्लिम परिवार में पले बढ़े।

    कबीरदास की रचनाओं के नाम बताओ?

    कबीर दास की रचनाओं का संग्रह बीजक है जिसमें तीन भाग हैं- साखी,सबद और रमैनी।

    कबीरदास की मृत्यु कब हुई?

    कबीर दास की मृत्यु सन् 1518 ईसवीं में मगहर, उत्तर प्रदेश में हुई।

    कबीर दास की भाषा कैसी है?

    कबीर दास की भाषा हिन्दी है इनकी भाषा में अवधी और ब्रजभाषा के मिश्रित रूप उपलब्ध हैं।

    कबीरदास जी के गुरु का क्या नाम था?

    कबीरदास के गुरु महान आचार्य रामानंद थे।

    कबीर किस भगवान को मानते थे?

    कबीर निराकार ब्रह्म के उपासक थे।


    इस लेख को पूरा पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद! इसे अपने दोस्तों के साथ Share जरूर करें ।

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